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Organic Uttarakhand बनने की दिशा में उत्तराखंड के बढ़ते कदम

by Rajendra Joshi
October 7, 2023
in संपादकीय
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Organic Uttarakhand

             

Dehradun: (Organic Uttarakhand) पृथ्वी पर जब मानव का उद्भव हुआ तब वह पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर था। आरंभिक मानव गुफाओं में रहता था और कंद मूल फल खाकर अपना पेट भरता था। पत्थरों के औजारों से वह जंगली जानवरों का शिकार करता था और उससे भी अपनी पेट की क्षुधा शांत करता था। इन सबके लिए मानव को लम्बी-लम्बी यात्राएं करनी पड़ती थी। समय-समय के साथ मानव ने एक जगह पर बसना शुरू किया और फिर कृषि की शुरुआत की। तब से लेकर आज तक कृषि को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। आज भी दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं कृषि प्रधान है। भारत में भी लगभग दो तिहाई लोग कृषि कार्य पर ही आश्रित है। जनसंख्या की अतिशय वृद्धि ने पूरी दुनिया के सामने खाद्य सुरक्षा का संकट खड़ा कर दिया। इसी के फलस्वरूप रासायनिक खेती की शुरुआत हुई। रासायनिक खेती ने खाद्य सुरक्षा की समस्या को तो हल कर दिया, लेकिन इसने मानव स्वास्थ्य, मृदा उर्वरता एवं पर्यावरण के सामने नया संकट खड़ा कर दिया। इस वजह से देश और दुनिया के लोगों का रुझान जैविक खेती और जैविक उत्पादों की ओर बढ़ा है ।

Organic Uttarakhand

भारत में परंपरागत रूप में जैविक खेती का इतिहास बहुत पुराना है। पूरी दुनिया के लिए आधुनिक सन्दर्भों में जैविक खेती की संकल्पना अभी नई है, लेकिन फिर भी भारत इस मामले में भी काफी आगे है। जैविक खेती करने वाले किसानों की संख्या की दृष्टिकोण से भारत पूरे विश्व में पहले स्थान पर है और लेकिन जैविक खेती के रकबे के हिसाब से भारत अभी भी काफी पीछे है। जैविक खेती के कम क्षेत्रफल के बावजूद भी पूरी दुनिया के जैविक उत्पादों का 30 प्रतिशत उत्पादन भारत में ही होता है। जैविक उत्पादों के निर्यात में भी भारत की स्थिति काफी अच्छी है।

भारत के कुछ राज्य जैविक कृषि के क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रहे है। सिक्किम भारत का पहला शत प्रतिशत जैविक राज्य है और मध्य प्रदेश जैविक खेती के लिए सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला राज्य है। उत्तराखंड और त्रिपुरा भी जैविक राज्य बनने की दिशा में अग्रसर है। अभी हाल ही में उत्तराखंड को लगातार चौथी बार राष्ट्रीय स्तर पर जैविक राज्य का प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। विगत चार वर्षों में लगातार चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना अपने आप ही उत्तराखंड में जैविक खेती के बढ़ते कदम की ओर इशारा करता है। उत्तराखंड की सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध दिखाई देती है। राज्य बनने के बाद 2003 में उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद् के गठन के साथ ही उत्तराखंड को “जैविक उत्तराखंड” बनाने की कवायद शुरू हो गई थी, जिसके सुखद परिणाम अब दिखने लगे हैं। उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद् के प्रयासों का ही परिणाम है कि विगत पांच वर्षों में राज्य में जैविक खेती का क्षेत्रफल 2% से बढ़कर लगभग 37% तक पहुँच गया है। 2025 तक राज्य में जैविक खेती का क्षेत्रफल 50% तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि उत्तराखंड में जैविक राज्य बनने की पूरी संभावनाएं है। यदि इसी गति से उत्तराखंड में जैविक खेती का विकास होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड पूर्ण जैविक राज्य होगा।

यह भी पढ़ेः जिम कार्बेट पार्क कहां है? || About Jim Corbett National Park

जैविक खेती से किसानों की लागत में कमी आई है और जैविक उत्पादों से किसानों की आमदनी बढ़ी है। आज उत्तराखंड में ऐसे कई किसान है जिन्होंने जैविक खेती के बलबूते सफलता की नई इबारत लिखी है। उत्तराखंड के जैविक उत्पादों की मांग देश में ही नहीं विदेशों भी हो रही है। 2025 तक भारत में ही जैविक उत्पादों का बाजार 75000 करोड़ का होने का अनुमान है। ऐसे में उत्तराखंड के पास जैविक बाजार में पैठ बनाकर अपनी आर्थिकी सुधारने का एक अच्छा अवसर है। 

जैविक कृषि के क्षेत्र में हमारा राज्य काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और 2025 तक उत्तराखंड के कुल कृषि क्षेत्रफल के 50% भाग पर जैविक खेती का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसे हम अवश्य ही प्राप्त कर लेंगे. – गणेश जोशी,  कृषि मंत्री उत्तराखंड

जैविक उत्पाद (Organic Uttarakhand) परिषद के मुख्य कार्य –

  1.जैविक कृषि अपनाने हेतु कृषकों को प्रेरित एवं प्रशिक्षित करना तथा उनका पंजीकरण करना।

   2.जैविक फसल उत्ंपादन की उन्नत फसल पद्धतियां (Improved Package of Practices) उपलब्ध कराना।

    3.विभिन्न रेखीय विभागों के विभिन्न स्तरों के अधिकारियों, प्रसार कार्यकर्ताओं तथा कृषकों के लिए जैविक कृषि पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना।

   4.कृषकों के जैविक उत्पादों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का बाजार उपलब्ध कराने एवं उनके उत्पादों को उचित मूल्य दिलाने में सहयोग प्रदान करना।

   5.उपभोक्ताओं में जैविक उत्पादों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए मेलों एवं प्रदर्शनियों के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करना।

   6.लघु एवं सीमांत कृषकों का कम खर्चे पर जैविक प्रमाणीकरण कराने हेतु आन्तरिक नियन्त्रण प्रणाली (Internal Control Syestem-ICS) को क्रियान्वित करना।

जैविक उत्पाद परिषद (Organic Uttarakhand) की मुख्य उपलब्धियां:

(1)  राज्य में विभिन्न जैविक मानको के अनुसार प्रदेश के 480500 लघु व सीमान्त कृषको के 223014 हैक्टेयर क्षेत्र को जैविक में पंजीकृत किया जा चुका है। इस प्रकार से जैविक कृषि के अन्तर्गत गत 05 वर्ष में क्षेत्र को 2 प्रतिशत से बढ़ाकर 37 प्रतिशत किया गया है।

(2)  वर्ष 2022-23 के अन्तर्गत परिषद द्वारा लगभग रू0 11.79 करोड़ मूल्य के विभिन्न स्थानीय प्रमाणित जैविक उत्पाद जैसे बासमती धान, चौलाई, राजमा, मण्डुआ, झंगोरा, सोयाबीन, मिर्च, गन्ना इत्यादि का राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सामान्य दरों के अपेक्षा 15 से 25 प्रतिशत प्रिमियम पर विक्रय कराया गया है। जैविक उत्पादों के विक्रय से लगभग 8000 कृषक परिवार लाभान्वित हुए हैं।

जैविक उत्पादो प्रोत्साहन के लिए “Organic Uttarakhand” ब्रान्ड परिषद द्वारा पंजीकृत कराया है तथा परिषद द्वारा विभिन्न मेलों इत्यादि मे प्रदर्शित किए जाने वाले जैविक उत्पादो को उक्त ब्रान्ड नाम से किया जाता है।

(3)  प्रदेश तथा प्रदेश से बाहर के जैविक कृषकों तथा जैविक खेती से जुड़े विभिन्न स्टेक होल्डर्स के क्षमता विकास हेतु राज्य का एक मात्र जैविक कृषि प्रशिक्षण केन्द्र का संचालन जैविक उत्पाद परिषद के माध्यम से वर्ष 2006 से मजखाली, जनपद अल्मोड़ा में किया जा रहा है।

(5)  प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के 10 विकासखण्डों (देवाल, जखोली, अगस्तुनि, उखीमठ, प्रतापनगर, डूण्डा, जयहरीखाल, सल्ट, मुनस्यारी तथा बेतालघाट) को पूर्ण जैविक घोषित करते हुए शासनादेश जारी किया गया है जिसके क्रम में जैविक उत्पाद परिषद द्वारा इन विकास खण्डों में कृषि प्रक्षेत्रों को जैविक कृषि प्रक्षेत्रों के रूप में रूपान्तरित किये जाने हेतु विभिन्न कार्य जैसे कृषकों का चयन, उनका प्रशिक्षण, जैविक आगतों का वितरण, विभिन्न प्रकार की जैविक खाद उत्पादन संरचनाओं का निर्माण, जैविक प्रमाणीकरण, विपणन इत्यादि का कार्य सम्पादित किया गया।

(6)  प्रदेश के पारम्परिक अनाजों (रामदाना, सोयाबीन, राजमा, उगल इत्यादि) को जैविक के रूप में घरेलू बाजार हेतु विकसित करने के उद्देश्य से परम्परागत कृषि योजना के अन्तर्गत पी0जी0एस0 प्रमाणीकरण प्रक्रिया के माध्यम से परिषद द्वारा 400 कलस्टरों में तथा कृषि विभाग व अन्य सहयोगी विभागो के द्वारा 3900 क्लस्टर्स में जैविक कृषि का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। उक्त कार्यक्रम मे कुल 195000 कृषको का 78000 हैक्टेयर पंजीकृत है।

(7)  कृषको के जैविक उत्पादो (Organic Uttarakhand) को स्थानीय बाजार उपलब्ध कराने के उददेश्य से साप्ताहिक हाट का आयोजन किया जा रहा है।

(8)  उत्तराखण्ड जैविक अधिनियम 2019 प्रदेश में लागू किया गया है, जिससे आर्गेनिक उत्तराखण्ड ब्राण्ड को अलग पहचान मिल रही है ।

(9)  राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मेले, प्रदर्शनी व संगोष्ठी आदि पर प्रतिभाग कर जैविक उत्पादों व जैविक खेती हेतु आम जन मानस को जागरूक करने क प्रयास किया जा रहा है।

(10) प्रदेश को वर्ष 2017-18, 2018-19, 2021-22 तथा 2023 में जैविक कृषि के क्षेत्र में उत्तराखण्ड को लगातार चार बार सर्वश्रेष्ठ जैविक प्रदेश का पुरस्कार तथा एक बार सर्वश्रेष्ठ कृषि उद्यमी कृषक विकास चैंबर द्वारा प्रदान किया गया है। 

(11) जैविक उत्पादों के विक्रय हेतु प्रदेश में यात्रा मार्ग, मुख्य बाजार, पर्यटक स्थल, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट आदि स्थानो पर 430 ऑर्गेनिक आउटलेट स्थापित किये जाने का लक्ष्य है जिसके सापेक्ष वर्तमान तक 100 आउटलेट स्थापित किए जा चुके है।

(12) विपणन हेतु स्थानीय जैविक उत्पादक समूहों द्वारा उत्पादों को एकत्र कर, उनके वर्गीकरण के पश्चात क्रेता-विक्रेता के बीच उत्पाद मूल्य निर्धारण में प्रक्षे़त्र कार्मिक प्रयत्नशील है।

यह लेख सचिन कुमार द्वारा लिखा गया है, आप विगत वर्षों से लेखन कार्य में लगे हैं साथ ही उत्तराखण्ड सिविल सेवा की तैयारी के लिए भी प्रयासरत हैं।

Tags: Organic Uttarakhandकैबिनेट मंत्री गणेश जोशी

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