प्रकृति संरक्षण दिवस प्रकृति के सौन्दर्य और उसके महत्व का उत्सव मनाने का दिन है। यह हमारे प्राकृतिक संसार के सामने खड़ी चुनौतियों के प्रति जागरुकता बढ़ाने का भी दिन है। दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष जिसका हमारे पूर्वज बहुत सम्मान करते थे वह है हमारे बाहरी पर्यावरण और हमारे आंतरिक स्व के बीच परस्पर जुड़ाव। जिस प्रकार हम अपने आस-पास फैली प्राकृतिक दुनिया की रक्षा और संरक्षण के लिए प्रयास करते हैं, उसी प्रकार हमारे आंतरिक पर्यावरण के महत्व को पहचाना भी उतना ही आवश्यक है, जो अकेले ही बाहरी पर्यावरण की रक्षा, पोषण तथा संरक्षण कर सकता है। लेकिन बीते दिनों में पूर्वजों ने पर्यावरण का संरक्षण भला कैसे किया होगा?
प्राचीन और समकालीन परिपेक्ष्य में प्रकृति का सम्मान:
पूरे इतिहास में, विभिन्न संस्कृतियों ने प्राकृतिक दुनिया के हर पहलू में दैवीय उपस्थिति को पहचानते हुए, प्रकृति के तत्वों के प्रति गहरी श्रद्धा रखी है। हिंदुओं का मानना था कि प्रकृति के प्रत्येक तत्व को सर्वोच्च दिव्यता की अभिव्यक्ति के रूप में पूजा जाता है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों के पवित्र ग्रंथ, वर्षा देवताओं, वायु देवताओं और पेड़ों आदि के प्रति गहरी श्रद्धा से भरे हुए हैं। दिव्य और प्राकृतिक संसार के बीच आध्यात्मिक संबंध अविभाज्य है, जो एक ही परम् वास्तविकता के दो पहलू हैं। सूफ़ियों की शिक्षाएं प्राकृतिक दुनिया का सम्मान और संरक्षण करने पर भी बहुत ज़ोर देती हैं। हृदय-आधारित ध्यान का उपयोग करते हुए सूफ़ी परम्पराओं में पृथ्वी, अंतरिक्ष, अग्नि, जल तथा वायु जैसे तत्वों को गहरी श्रद्धा के साथ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जैन तीर्थंकरों को कुछ देशी पेड़ों के नीचे ध्यान करने के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ था।
विलियम वर्ड्सवर्थ, जिन्हें अक्सर “प्रकृति के कवि” के रूप में जाना जाता है, का मानना था कि प्राकृतिक दुनिया की सुंदरता व्यक्तियों को आपसी प्रेम, करूणा और सार्वभौमिक भाईचारे की भावना की ओर ले जा सकती है। शैली ने, “प्रकृति के उपासक” के रूप में अपनी स्वयं-घोषित भूमिका में, मानवता को वास्तविक प्रसन्नता और पूर्णता की ओर मार्गदर्शन करने की प्रकृति की क्षमता को पहचाना।
विभिन्न संस्कृतियों और इतिहास के काल-खण्डों में प्रकृति के प्रति स्थाई श्रद्धा हमें प्राकृतिक संसार के साथ हमारे गहन आध्यात्मिक संबंध की याद दिलाती है। इस संबंध को अपनाने से हमारे पर्यावरण की गहरी सराहना हो सकती है; और हमें आंतरिक शांति, दयालुता और सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व के लिए प्रकृति के साथ गहरा संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
21वीं सदी में प्रवेश करें और प्रकृति के संरक्षण का संदर्भ ग्रहण करें:
पशुओं और पेड़ों में प्रकृति की रक्षा करने वाली मानवीय भावनाओं का अभाव है। प्रकृति को बचाने के लिए कार्य करने में असफल होना, उसे हस्ताक्षेप करने और संतुलन लाने के लिए आमंत्रित करता है। मेरे आध्यात्मिक गुरू, शाहजहाँपुर के श्री राम चन्द्र ने ज़ोर दिया: “सुधर जाओ या समाप्त हो जाओ।” चरित्र, व्यवहार और अखंडता का व्यक्तिगत परिवर्तन हमारे भीतर शांति का विस्तार करता है, वैश्विक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
आध्यात्मिकता और ध्यान का अभ्यास आंतरिक शुद्धि और परिवर्तन के लिए सबसे प्रभावी साधन है।
कार्बन डाइ-ऑक्साइतड और ऑक्सीजन के पारिस्थितिक आदान-प्रदान के अलावा, पेड़ हमारे मानसिक कंपन के साथ भी गहरा संबंध साझा करते हैं। उनकी शांत और शांतिपूर्ण ऊर्जा चिंता और घबराहट को कम कर सकती है। World Nature Conservation Day आध्यात्मिक विज्ञान द्वारा समर्थित, हार्टफुलनैस ध्यान के आदिगुरू, फतेहगढ़ के श्री राम चन्द्र ने पेड़ों को प्राणाहुति की आध्यात्मिक ऊर्जा के वाहक के रुप में मान्यता दी।
हालाँकि हम एक दिन इस ग्रह को छोड़ सकते हैं, प्रकृति और हमारी चेतना के बीच स्थायी बंधन बना रहता है। पेड़ों से निकलने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा हमारी प्रजाति के आध्यात्मिक अस्तित्व की रक्षा करती है, प्रकृति के साथ एक शाश्वत प्रेम कथा को कायम रखती है।
हृदय-केंद्रित ध्यान और जागरूकता के माध्यम से स्थायी समाधान:
ध्यान एक परिवर्तनकारी उपकरण है जो संरक्षण प्रयासों के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। ध्यान पारिस्थितिक जागरूकता को बढ़ावा देने, पारिस्थितिक तंत्र के नाजुक संतुलन और सभी जीवित प्राणियों की परस्पर निर्भरता को पहचानने में मदद करता है। ध्यान की शांति में, वे सीमाएँ जो हमें प्रकृति से अलग करती हैं, समाप्त होने लगती हैं। हम पर्यावरण के साथ एकता की गहरी भावना का अनुभव करते हैं, यह महसूस करते हुए कि हमारी भलाई आंतरिक रूप से पृथ्वी के स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है। यह हमें हमारे पारिस्थितिक पदचिन्ह (environmental footprint) को कम करने, न केवल साथी मनुष्यों के प्रति बल्कि सभी जीवित प्राणियों के प्रति सहानुभूति और करूणा का पोषण करने में मदद करता है, एक हृदय-केंद्रित ध्यान का अभ्यास हमें आवासों की रक्षा करने और मनुष्यों तथा वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने का दृढ़ संकल्प देता है।
पृथ्वी की रक्षा करें, आत्मा को उन्नत करें: ‘Daji’ Kamlesh Patel
प्रकृति के आलिंगन में, हम उपचार और नवीनीकरण पाते हैं। प्रकृति का संरक्षण केवल मात्र कर्तव्य नहीं, बल्कि एक पवित्र विशेषाधिकार है। संरक्षण का प्रत्येक कार्य सृष्टिकर्ता और उसकी रचना के प्रति श्रद्धा का कार्य है। जैसे ही हम पृथ्वी की रचना की रक्षा करते हैं, हम अपनी आत्मा की उन्नति का पोषण करते हैं। प्रकृति के संरक्षण में, आध्यात्मिकता अपनी प्रामाणिक अभिव्यक्ति पाती है। इस विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर, आइए हम मानवता और प्राकृतिक संसार के बीच गहन आध्यात्मिक संबंध में एकजुट हों। प्राचीन परम्पराओं और समकालीन हृदय-केंद्रित चिंतन प्रथाओं का ज्ञान हमें उस आंतरिक सद्भाव की याद दिलाता है जो तब मौजूद होता है जब हम अपने पर्यावरण का सम्मान करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।
Heartfulness Meditation के बारे में : ‘Daji’ Kamlesh Patel
हार्टफुलनेस ध्यान प्रथाओं और जीवनशैली में बदलाव का एक सरल संग्रह प्रदान करता है, जिसे पहली बार बीसवीं शताब्दी में विकसित किया गया था और 1945 में श्री रामचंद्र मिशन के माध्यम से शिक्षण में औपचारिक रूप दिया गया था। ये अभ्यास योग का एक आधुनिक रूप है जिसे संतोष, आंतरिक शांति, करुणा, साहस और विचारों की स्पष्टता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। हार्टफुलनेस अभ्यास जीवन के सभी क्षेत्रों, संस्कृतियों, धार्मिक विश्वासों और आर्थिक स्थितियों से पंद्रह वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त हैं। 160 देशों में कई हजारों प्रमाणित स्वयंसेवक प्रशिक्षकों और चिकित्सकों द्वारा 5,000 से अधिक हार्टफुलनेस केंद्रों का समर्थन किया जाता है।
लेखक – ‘Daji’ Kamlesh Patel – Heartfulness Meditation के मार्गदर्शक, श्री रामचन्द्र मिशन के अध्यक्ष एवं पद्म भूषण पुरस्कार विजेता
‘दाजी’ कमलेश पटेल