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हिंदुस्तानी वोकल गायन के धुनों पर जमकर झुमे दून के लोग

by Mukesh Joshi
October 29, 2023
in देहरादून
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देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2023 के दूसरे दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। विरासत साधना कार्यक्रम के अंतर्गत देहरादून के 8 स्कूलों ने प्रतिभाग किया । जिनमे फीलफोट पब्लिक स्कूल देहरादून, दून इंटरनेशनल स्कूल, एसजीआरआर पब्लिक स्कूल बालावाला, एसजीआरआर पब्लिक स्कूल सहस्त्रधारा रोड, दून सरला एकेडमी, होप वे पब्लिक स्कूल, टच वुड स्कूल और आसरा ट्रस्ट शामिल है। एलिमिनेशन दौर में लिखित कार्य पूरा करने के लिए टीमों को 20 मिनट का समय दिया गया था। जिसमें दून इंटरनेशनल से वरदान सिंघल और ऐश्वर्या रावत, होप वे पब्लिक स्कूल से ओम बिलालवान और गार्गी धस्माना, टच वुड स्कूल से मानव साका और प्रखर बहुगुणा, दून इंटरनेशनल से अनन्या सिंह और सिद्धांत सोलंकी ने फाइनल राउंड के लिए क्वालीफाई किया। आज की विरासत हेरिटेज क्विज के विजेता दून इंटरनेशनल से अनन्या सिंह और सिद्धांत सोलंकी रहे। दून इंटरनेशनल से वरदान सिंघल और ऐश्वर्या रावत ने दूसरा स्थान प्राप्त किया। सभी प्रतिभागियों को 9 नवंबर को पुरस्कार वितरण समारोह के अवसर पर प्रमाण पत्र और पुरस्कार दिए जाएंगे।

आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभांरंभ देहरादून के महापौर सुनील उनियाल गामा ने दीप प्रज्वलन के साथ किया एवं एके बालियान, पूर्व सीईडी पेट्रोन एलएनजी और ओएनजीसी के निदेशक मानव संसाधन और रीच विरासत के महासचिव आरके सिंह के साथ अन्य सदस्य भी मैजूद रहें। सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुतियों में आज पहली प्रस्तुति पोरबंदर, गुजरात का रास’ राणा सीडा और उनकी मंडली द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसमें तलवार नृत्य, ढाल तलवार, मानियारा, रास की गई प्रस्तुतियां दी गई, कलाकारों में राणा भाई सीदा ( लीडर ), मोहन, रमेश, नीलेश, भोजा भाई, खोदा, नितेश, लाखु, राम, नीलेश, मनोज, अर्जुन, नितिन, सागर, हरीश, जय एवं संगीतकार – मेरामन ( गायक ) आंर्व ( शहनाई ), प्रकाश ( ढोल ), अशिफ् ( ढोल ) ने अपना सहयोग दिया।

महेर रास समूह 1950 के दशक की शुरुआत में पोरबंदर, गुजरात, शुरु हुआ था। माहेर रास समूह ने दुनिया भर में, लगभग हर देश में प्रदर्शन किया है। उनका पारंपरिक तलवार और ढाल नृत्य अविश्वसनीय रूप से आकर्षक है। माहेर मेन्स रास ग्रुप मनियारो रास, ढाल तलवार रास, आशियाद रास, गोवर रास और अथिंगो रास का मुख्य रूप से प्रस्तुति देते है। माहेर का नृत्य उनकी मजबूत शारीरिक बनावट और उनकी लड़ाई की भावना के कारण बहुत ध्यान आकर्षित करता है। उनके पैरों की हरकतें युद्धभूमि में मार्च करते सैनिकों के समान प्रतीत होती हैं। पोरबंदर, गुजरात-भारत में स्थित, राणाभाई सीदा के नेतृत्व में यह समूह लगभग 35 वर्षों से अधिक समय अपनी प्रस्तुति देते आ रही है।

रास के प्रकारों में ढोल (ड्रम), सरनाई (शहनाई), हारमोनियम आदि जैसे संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता है। रास की वेशभूषा सादे सफेद कपड़े हैं – पगड़ी, छाती और पीठ पर लाल बैंड, लाल और सोने की परत चढ़ाए मोतियों से बना छोटा हार होता है।

ढाल तलवार रास – यह रास असली तलवारों और ढालों के साथ किया जाता है। यहां गायक युद्ध के बारे में गीत गा रहा है और माहेर समुदाय के सैनिक युद्ध में कैसे लड़े और उन्होंने जीत का दावा कैसे किया। यह रास युद्ध के मैदान में बहुत सारे घूमने, कूदने के साथ हमले और बचाव के बारीकियों को दिखता है।

मनियारो रास- यह रास लकड़ी से बनी छोटी डंडियों, जिन्हें डांडिया के नाम से जाना जाता है, के साथ किया जाता है, जबकि गायक धार्मिक गीत गाते हैं। इस रास में कूदना और घूमना सहित कई अलग-अलग स्टेप्स शामिल हैं।

अथिंगो रास – यह रास डांडिया और एक अन्य डंडे के साथ किया जाता है जिसमें डंडे से अलग-अलग रंग के तार जुड़े होते हैं। रास करते समय, प्रत्येक खिलाड़ी एक तार के सिरे को पकड़ता है और प्रदर्शन के दौरान सभी तार “डायमंड आकार में पट्टियाँ“ बनाते हैं और फिर खोल देते हैं। यह रास भी हस्तनिर्मित जीवंत रंग के कपड़ों के साथ किया जाएगा।

आशियाद रास और गोवर रास – यह रास “मनियारो रास“ में उपयोग की जाने वाली छोटी रंगीन लकड़ी की छड़ियों के साथ किया जाता है। इस रास के साथ संगीत में अधिक बीट्स का उपयोग करके संगीत घून बहुत तेज़ किया जाता है। ये कपड़े “मनियारो रास और ढाल तलवार रास“ में पहने गए कपड़ों से बहुत अलग हैं। इन कपड़ों पर बहुत सारे जीवंत रंग हैं और इनमें हस्तनिर्मित रंगीन टोपी और वास्कट हैं पहन कर कि जाती है।

वही सांस्कृतिक कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुतियों में ’मल्लिक ब्रदर्स’ द्वारा ध्रुपद प्रस्तुत किया गया एवं उनके प्रदर्शन की शुरुआत राग सरस्वती में ध्रुपद चार ताल बंदिया..“तेरो ही ज्ञान ध्यान, तेरो ही सुमिरन“ से हुई। उनकी मधुर आवाज ने एक अद्भुत संगीतमय माहौल बना दिया। उन्होंने अपने कार्यक्रम का समापन राग शिवरंजनी के साथ दिस मात्रा, सूर ताल बंदिया.. “शीश गैंग अर्धांग पार्वती, सदा विराजत कैलाशी“ से किया।

प्रशांत मलिक एवं निशांत मल्लिक जिन्हें लोकप्रिय रूप से ’मल्लिक ब्रदर्स’ के नाम से जाना जाता है, वे  दरभंगा ध्रुपद परंपरा से हैं और वह इस 500 साल पुरानी संगीत वंश की अखंड 13वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे तीन राष्ट्रीय पुरस्कार के भी विजेता हैं और उन्हें ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन से ध्रुपद गायन (युगल) में ’टॉप’ ग्रेड से सम्मानित किया जा चुका है। मल्लिक ब्रदर्स ने अपने पिता ध्रुपद पंडित प्रेम कुमार मल्लिक एवं दादा सुप्रसिद्ध ध्रुपद गायक पंडित विदुर मल्लिक जी से संगीत की शिक्षा ली है।

मल्लिक ब्रदर्स गौहर बानी और खंडार बानी ध्रुपद शैली के प्रमुख गायकों में से हैं। पारंपरिक रचनाओं के अलावा मल्लिक ब्रदर्स ने कबीरदास, स्वामी हरिदास, तुलसीदास सहित कई मध्यकालीन कवियों के पदों को ध्रुपद रूप में गाया और संगीतबद्ध भी किया है। वर्ष 2013-14 के लिए उन्हे  ’उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया और  उन्हे बिहार कला पुरस्कार 2015, पंडित मनमोहन भट्ट मेमोरियल अवार्ड, डगर घराना अवार्ड और सूरमणि पुरस्कार से भी नवाज़ा गया। मल्लिक ब्रदर्स ने भारत और विदेशों में कई संगीत कार्यशालाएँ आयोजित की हैं और उन्हें कई प्रतिष्ठित सेमिनारों में वक्ता/विशेषज्ञ के रूप में भी आमंत्रित किया जा चुका है ! मल्लिक ब्रदर्स 1999 से विदेश दौरे पर हैं और अब तक वह लगभग 25 देशों का दौरा कर चुके हैं। इसी के साथ उन्होंने ध्रुपद स्कूल का निर्माण भी किया है जिसका नाम उनके दादा पंडित विदुर मल्लिक  के नाम से है जो की प्रयागराज मे स्थित है जहाँ ध्रुपद संगीत ना केवल सिखाया जाता है बल्कि उसका प्रचार भी किया जाता है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुतियों में ओंकार दादरकर जी द्वारा हिंदुस्तानी वोकल गायन प्रस्तुत किया गया जिसमें उन्होंने अपनी प्रस्तुति की (ख्याल) से शुरू किया एवं उन्होंने प्रदर्शन का समापन भेरवी भजन के साथ किया। पंडित मितिलेश झा जी (तबला), पारुमिता मुखर्जी (हारमोनियम), मोहित खान और कमल वर्मा (तानपुरा/स्वर) पर उन्हें सहयोग दिया।

ओंकार दादरकर का जन्म 30 जुलाई 1977 को मुंबई में हुआ था, श्री ओंकार दादरकर ’मराठी नाट्यसंगीत’ के परिवार से हैं। उन्हें प्रारंभिक मार्गदर्शन अपनी चाची, दिवंगत प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक माणिक वर्मा और उसके बाद राम देशपांडे से मिला। शास्त्रीय संगीत के लिए सीसीआरटी छात्रवृत्ति (दिल्ली) से सम्मानित होने के बाद, उन्होंने दादर-माटुंगा सांस्कृतिक केंद्र में गुरु-शिष्य-परंपरा के तहत पंडित यशवंतबुआ जोशी से शिक्षा ग्रहण की। श्री ओंकार दादरकर ने पूरे भारत के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा और   यू के में एक नियमित संगीत कार्यक्रम कलाकार के रूप में  पहचान हासिल की है।  नेपाल और कनाडा में  प्रतिष्ठित कार्यक्रमों के अलावा कोलकाता, दिल्ली और मुंबई में आईटीसी संगीत सम्मेलनों में उन्होंने प्रदर्शन किया है।  प्रतिष्ठित दरबार महोत्सव, यू.के. में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें व्यापक रूप से प्रशंसा भी मिली । उनके कई पुरस्कारों में से उन्हे 2010 मे मिला  प्रतिष्ठित उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार भी शामिल हैं, जो संगीत नाटक अकादमी द्वारा 35 वर्ष से कम उम्र के प्रतिभाशाली कलाकारों को दिया जाता है। इसी के साथ उन्हे 2009 में आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार से भी नवाज़ा गया , मुंबई के सहयोग से उन्हे चतुरंगा प्रतिष्ठान द्वारा दिए गए “चतुरंगा संगीत शिष्यवृत्ति पुरस्कार“ से वह इस पुरस्कार को पाने वाले पहले प्राप्तकर्ता भी बने।10 नवंबर तक चलने वाला यह फेस्टिवल लोगों के लिए एक ऐसा मंच है जहां वे शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के जाने-माने उस्तादों द्वारा कला, संस्कृति और संगीत का बेहद करीब से अनुभव कर सकते हैं। इस फेस्टिवल में परफॉर्म करने के लिये नामचीन कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। इस फेस्टिवल में एक क्राफ्ट्स विलेज, क्विज़ीन स्टॉल्स, एक आर्ट फेयर, फोक म्यूजिक, बॉलीवुड-स्टाइल परफॉर्मेंसेस, हेरिटेज वॉक्स, आदि होंगे। यह फेस्टिवल देश भर के लोगों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और उसके महत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का मौका देता है। फेस्टिवल का हर पहलू, जैसे कि आर्ट एक्जिबिशन, म्यूजिकल्स, फूड और  हेरिटेज वॉक भारतीय धरोहर से जुड़े पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है।

रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है।

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