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विरासत में गढ़वाल के पांडव लोक रंगमंच ने चक्रव्यूह प्रस्तुत किया

by Mukesh Joshi
November 5, 2023
in देहरादून
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देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2023 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। प्रेस कॉन्फ्रेंस में विरासत के संस्थापक और महासचिव आरके सिंह, एचके अवल, ताज ऋषिकेश के कार्यकारी शेफ राकेश राणा और विरासत की मीडिया प्रभारी श्रीमती प्रियंवदा अय्यर सहित सभी वरिष्ठ सदस्य मौजूद रहे। प्रेस वार्ता में उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रम के मकसद के बारे में बात की और कहा ’यह आयोजन विरासत को संरक्षित करने और संस्कृति के प्रसार के लिए आयोजित किया जाता है ताकि लोग पर्यटन के लिए रूस और दक्षिण अफ्रीका जैसे विभिन्न देशों से आ सकें।

उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि इस बार लोग दिन के समय भी आ रहे हैं और स्टालों का अवलोकन कर रहे हैं। उन्होंने प्रदर्शन करने वाले कलाकारों के बारे में बताया कि वे श्रेणी के हैं। उन्होंने डॉ. पुरोहित की प्रशंसा की जिन्होंने चक्रव्यूह के सभी संवादों को, जो कि गढ़वाल, उत्तराखंड के पांडव लोक रंगमंच द्वारा महाभारत का चित्रण है, गढ़वाली में बदल दिया। उन्होंने कहा कि हर साल दर्शकों की संख्या बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुमाऊंनी संस्कृति की प्रस्तुति की जा रही है और वह विरासत को एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बनाने और अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। विरासत उत्कृष्टता के मानक स्थापित करने के लिए आयोजित की जाती है।

उन्होंने लोगों द्वारा बाजरा और अन्य स्ट्रीट फूड से बने खाद्य पदार्थों की प्रशंसा करने की बात कही। उन्होंने इस कार्यक्रम को स्वर्गीय श्री सुरजीत किशन की स्मृति को समर्पित किया, जो विरासत के उपाध्यक्ष थे। उन्होंने सभी संगठनों को जोड़ने के अपने लक्ष्य पर जोर दिया ताकि वे एक साथ काम कर सकें। प्रेस कॉन्फ्रेंस में अन्य सदस्य शामिल थे अरुण नैनवाल प्रबंधक, ताज आनंद काशी के महाप्रबंधक निवेदन कुकरेती, शेफ जीतेन्द्र उपाध्याय और शेफ अश्विन, ताज पीलीभीत के विकास नगर होटल मैनेजर और ताज कॉर्बेट से शेफ हरीश। आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभांरंभ मुख्य अतिथि ए.के.वहल, रीच के ट्रस्टी, रीच विरासत के महासचिव आर.के.सिंह एवं अन्य सदस्यों ने दीप प्रज्वलन के साथ किया। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2023 के नौवे दिन के सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूआत चक्रव्यूह के मचन से हुआ जिसमें गढ़वाल, उत्तराखंड के पांडव लोक रंगमंच ने विरासत मे चक्रव्यूह प्रस्तुत किया जो महाभारत का एक चित्रण है। उनकी टीम डॉ. पुरोहित द्वारा लाए गए थे जो नाटक के मुख्य लेखक हैं।

नाटक के निर्देशक श्री अभिषेक बहुगुणा है ने किया। डॉ. संजय पांडे, गोकर्ण बमराडा, मनीष खल्ली, शैलेन्द्र मेठानी, श्रीमती रेखा और श्रीमती बबीता सहित पूरी टीम ने सहयोग दिया। ढोल-दमाऊ को अखिलेश और उनके साथियों ने बजाया और हुड़का को आरसी जोयाल ने बजाया। धार्मिक मान्यताओं ने गढ़वाल क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को गढ़ा हैं और गढ़वाल की ऐसी ही एक अमूल्य सांस्कृतिक विरासत है पांडव नृत्य, जिसे पांडव लीला के नाम से भी जाना जाता है। यह विस्तृत धार्मिक नृत्य और नाट्य प्रदर्शन कर विभिन्न बस्तियों में मनाया जाता है, जिनमें से अधिकांश रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों की मंदाकिनी और अलकनंदा घाटियों में बसे हैं। जब कड़ाके की सर्दी उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों को अपनी चपेट में ले लेती है, तो गढ़वाल के कई छोटे-छोटे गांवों के निवासी पांडव नृत्य का अभ्यास करके खुद को सक्रिय रखते हैं। यह औपचारिक नृत्य पांडवों की यात्रा के उपलक्ष्य में और उत्तराखंड के घरों और गांवों में खुशियाँ लाने के लिए किया जाता है। भक्ति भावना पर आधारित यहां की संस्कृति पौराणिक और ऐतिहासिक रूप से एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि धर्म और अधर्म के बीच अंतर पहचानने वाले मनु के सभी पुत्र इस संस्कृति को जीवित रखने का संकल्प लेते हैं। पांडव नृत्य पांडव भाइयों की कहानी बताता है, जो उनके जन्म से लेकर स्वर्गारोहिणी यात्रा- ’स्वर्ग की यात्रा’ शुरू करने तक की है। उनकी यात्रा के विविध तत्व ढोल की थाप पर आयोजित इस अनुष्ठान नृत्य में शामिल हैं। उत्तराखंड की पांडव लीला में महाभारत के ’धर्म युद्ध’को दोहराया गया यह 10-12 दिवसीय नृत्य नाटिका कीचक वध (कीचक का वध), नारायण विवाह (भगवान विष्णु का विवाह), चक्रव्यूह (गुरु द्रोण द्वारा डिजाइन की गई एक सैन्य रणनीति), गेंदा वध (डमी गैंडे की बलि) जैसे विभिन्न कथानकों को छूती है।

पांडव नृत्य के अंतिम दिन उत्सव का समापन समारोह होता है, जिसके बाद ग्रामीणों के लिए एक भव्य दावत होती है। जिसके बाद पांडव लीला में इस्तेमाल किए गए पवित्र हथियारों को तरकश में सुरक्षित रख दिया जाता है। गाँव के स्थानीय कलाकार पाँच पांडवों के पात्रों का चित्रण करते हैं, अर्थात् – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव। भगवान शिव, माँ राजेश्वरी, नागराजा और भगवान नारायण का प्रतिनिधित्व करने के लिए देवताओं की प्रतीकात्मक आकृतियाँ बनाई जाती हैं जिन्हें ’निशान’कहा जाता है। पांडव भाइयों का रूप धारण करने वाले सभी कलाकार ढोल-दमाऊ, पहाड़ी वाद्ययंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि पांडव लीला करते समय, पांडवों की ब्रह्मांडीय ऊर्जा कलाकारों के शरीर में प्रवेश करती है। चक्रव्यूह कथानक को पांडव लीला में भी दर्शाया गया है, जिसमें कौरवों ने सबसे चतुर युद्ध रणनीति अपनाकर अभिमन्यु को मार डाला था। पांडव लीला का समापन दूसरे दिन नौगिरी कौथिग और अंतिम दिन गेंदा कौथिग की मेजबानी करके किया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति में सुमीत आनंद द्वारा ध्रुपद गाया गया जिसमें उन्होंने राग यमन द्रुपद आलाप से शुरुआत किया इसके बाद वह 3 पद गाये। चैताल देवी स्तुति “आनंदी जगबंदी, त्रिपुरा सुंदरी माता“ धमार ताल, “कृष्ण पद लाल रंगीले खेले होली“ सूल ताल “शिव पाद शंकर शिव पिनाकी गंगाधर।“ पं. राधे श्याम शर्मा पखावज वादन पर सहयोग किया और रितिका पांडे तानपुरा बजा कर अपना सहयोग दिया। ध्रुपद और ख्याल शास्त्रीय गायन के दो रूप हैं जो आज भी उत्तर भारत में गाए जाते हैं। सुमीत आनंद दरभंगा परंपरा से आने वाले ध्रुपद गायक हैं। पद्मश्री पंडित सियाराम तिवारी और पंडित राम प्रसाद पांडे जैसे दिग्गज ध्रुपद गायकों के परिवार से आने वाले आनंद ने पटना में अपने प्रारंभिक वर्षों में अपने परिवार के दोनों पक्षों से दरभंगा शैली में व्यापक प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

उनके वर्तमान गुरु, पंडित अभय नारायण मल्लिक, पिछली शताब्दी के उत्तरार्ध के प्रसिद्ध कलाकारों में से थे। वह एक कलाकार, शिक्षक, महोत्सव क्यूरेटर और आयोजक, सहयोगी, लेखक और शोधकर्ता हैं। वह ध्रुपद के दरभंगा घराने के अपने घराने के प्रति सच्चे रह कर साथ ही साथ ध्रुपद गायन को सुलभ, मनोरंजक और प्रासंगिक बनाकर समकालीन रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। वे ध्रुपद को उसके पारंपरिक रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो मधुर विस्तार (अलाप) और रचना (पद) पर समान जोर देता है। सुमीत ऑल इंडिया रेडियो (ए.आई.आर.) नई दिल्ली से प्रसारण करते हैं और नियमित रूप से भारत भर के संगीत समारोहों में ध्रुपद गायन प्रस्तुत करते है। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के पैनलबद्ध कलाकार हैं और उन्होंने बर्लिन, लंदन, प्राग, बुडापेस्ट और पेरिस में ध्रुपद गायन प्रस्तुत किया है। ध्रुपद गायक होने के अलावा, सुमीत दुनिया भर के कई संगीतकारों और शैलियों के साथ सहयोग करते हैं। वह फेस्टिवल क्यूरेटर, आयोजक, विचारक, वक्ता, लेखक और प्रशिक्षक के रूप में संगीत की सेवा में अपने शोध और प्रबंधन अनुभव को भी साझा करते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुति में पं. साजन मिश्रा और पं. स्वरांश मिश्रा द्वारा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत किया गया। जिसमे उन्होंने राग जोग से शुरुआत की जो विलाम्बित, मध्य और द्रुत ताल में एक ख्याल कंपो रचना है। उनके साथ हारमोनियम पर पं. धर्मनाथ मिश्र, तबले पर शुभ महाराज, तानपुरा पर नितिन और योगेश ने संगत की।

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