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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की प्रगति के साथ बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियां।

by Rajendra Joshi
October 25, 2025
in संपादकीय
0
-
  • पर्यावरण और विकास के बीच नई चुनौती

राजेन्द्र जोशी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की माँग और उपयोग दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है। स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, कृषि और शासन के क्षेत्र में एआई को परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन इस तकनीकी क्रांति के पीछे एक ऐसी सच्चाई छिपी है, जो न केवल प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ा रही है, बल्कि पर्यावरणीय चुनौतियों को भी गहरा कर रही है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक को चलाने के लिए विशाल डेटा सेंटरों की आवश्यकता होती है और इनमें शक्तिशाली सर्वरों का उपयोग होता है जिन्हें ठंडा रखने के लिए अत्यधिक मात्रा में पानी की जरूरत पड़ती है। यही वह बिंदु है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीकी उन्नति पर्यावरणीय संतुलन के लिए खतरा बनती जा रही है।


एआई और पानी की खपत: हाल ही में ओपनएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम ऑल्टमैन ने एक साक्षात्कार में कहा कि “चैट जीपीटी से पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देने में लगभग एक चम्मच के पंद्रहवें हिस्से जितना पानी खर्च होता है।” हालांकि यह सुनने में मामूली लगता है, लेकिन जब इसे अरबों प्रश्नों के पैमाने पर देखा जाए तो यह आंकड़ा बहुत बड़ा बन जाता है।
वहीं अमेरिका के टेक्सास और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालयों के शोध में पाया गया कि जीपीटी-3 मॉडल को केवल 10 से 50 प्रश्नों के उत्तर देने के लिए लगभग आधा लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि प्रत्येक प्रश्न के उत्तर में 2 से 10 चम्मच पानी खर्च हो जाता है। यह खपत केवल उत्तर उत्पन्न करने में नहीं होती, बल्कि डेटा सेंटरों की शीतलन प्रणाली यानी सर्वर को ठंडा रखने की प्रक्रिया में भी होती है।


वैश्विक स्तर पर बढ़ता खतरा: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की आधी आबादी पहले से ही जल संकट से जूझ रही है, वहीं कई देशों में जलवायु परिवर्तन, अनियमित वर्षा और भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन से हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। ऐसे में अगर एआई की डेटा-निर्भर प्रणालियाँ तेजी से विस्तार करती रहीं, तो यह संकट और अधिक गहराता जाएगा।
पर्यावरणीय प्रभाव और कार्बन उत्सर्जन: एआई सिर्फ पानी ही नहीं, बल्कि ऊर्जा की भारी खपत भी करता है। एक अनुमान के अनुसार, बड़े भाषा मॉडल के प्रशिक्षण में उतनी बिजली लगती है जितनी एक छोटे शहर को कुछ दिनों तक चलाने में। यह बिजली अधिकतर गैर-नवीकरणीय स्रोतों से आती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की गति और तेज होती है।


समाधान और जिम्मेदारी:
इस समस्या से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर कई नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता है जिनमें ग्रीन डेटा सेंटर की अवधारणा अपनाई जाए, जहां सौर या पवन ऊर्जा का उपयोग किया जाए। जल के पुनर्चक्रण, कुशल शीतलन प्रणाली और अपशिष्ट जल या खारे जल का प्रयोग को लागू करने की दिशा में प्रयास होने चाहिए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) निर्माता कंपनियों को पारदर्शिता व जिम्मेदारी से अपने सर्वरों की ऊर्जा और पानी की खपत के आँकड़े सार्वजनिक करने के साथ-साथ अपने उपयोगकर्ता में इसके प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए।


निष्कर्ष: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) निस्संदेह मानव सभ्यता की एक बड़ी उपलब्धि है लेकिन यदि इसे सतत विकास की दिशा में नहीं ढाला गया, तो यह तकनीक स्वयं पृथ्वी के संसाधनों और मानव सभ्यता पर बोझ बन जाएगी। भविष्य की दिशा यही होनी चाहिए कि “स्मार्ट टेक्नोलॉजी के साथ स्मार्ट पर्यावरण नीति” भी बनाई जाए, क्योंकि तकनीकि प्रगति की कीमत हमारी नदियाँ, झीलें और जलस्रोत बनें, तो यह विकास नहीं, विनाश की भूमिका कहलाएगी।

Tags: Rajendra Joshi

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