नई दिल्ली। जी-20 सदस्य देशों की प्रथम महिलाओं और वहां के राष्ट्राध्यक्षों के जीवनसंगियों ने आज पूसा स्थित आईएआरआई परिसर में अपने तरह की एक अनोखी प्रदर्शनी का प्रत्यक्ष अनुभव किया। इसका आयोजन कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने किया था। इस कार्यक्रम में तमाम मनभावन पहलुओं को शामिल किया गया था, जैसे प्रसिद्ध शेफ कुणाल कपूर, अनाहिता धोंडी और अजय चोपड़ा द्वारा मिलेट आधारित लाइव कुकिंग सेशन। इसके साथ ही भारत के अग्रणी स्टार्ट-अप्स की अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी को भी प्रदर्शित किया गया तथा भारतीय महिला कृषि-दिग्गजों के साथ बातचीत व ‘एग्री-स्ट्रीट’ की भी व्यवस्था की गई थी।
राष्ट्राध्यक्षों के जीवनसाथी प्रदर्शनी क्षेत्र पहुंचे, तो वहां प्रवेश करने के पहले उन्होंने ‘रंगोली क्षेत्र’ में संक्षिप्त दौरा किया। उस स्थान पर दो विशाल ‘मिलेट रंगोली’ बनाई गई थीं। इस सुंदर कलाकृति को मोटे अनाज और स्थानीय चित्रांकन से तैयार किया गया था। पहली रंगोली की विषयवस्तु “हार्मनी ऑफ हार्वेस्ट” पर आधारित थी, जिसके जरिये भारत की चिरकालीन कृषि परंपराओं को उजागर किया गया था। इसके माध्यम से भारत की कृषि-शक्ति को प्रदर्शित किया गया था तथा खेती की उपादेयता बढ़ाने में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका पर जोर दिया गया था। स्वदेशी खिलौनों की सजावट की गई थी, जो खेती में महिलाओं के विविध योगदानों को प्रतीकों के माध्यम से पेश करते थे। साथ ही पोषक अनाजों और टेराकोटा से बने ग्रामीण बर्तनों की भी प्रस्तुति की गई थी। इनके कारण रंगोली अत्यंत मनमोहक बन गई थी और वह कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण थी। दूसरी रंगोली भारत के सांस्कृतिक दर्शन – “वसुधैव कुटुम्बकम्” को प्रतिध्वनित कर रही थी, जो वैश्विक एकता का परिचायक है। भारत एक प्रमुख कृषि देश होने के नाते, वैश्विक खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लिहाजा, दूसरी रंगोली एकता और निर्वाह व पोषण के प्रति भारत के संकल्प को दर्शाती है।
प्रदर्शनी क्षेत्र में राष्ट्राध्यक्षों के जीवनसाथियों ने उत्कृष्ट कृषि स्टार्ट-अप की इको-प्रणाली को देखा, जहां 15 कृषि स्टार्ट-अप्स ने जमीनी स्तर पर चुनौतियों का मुकाबला करने तथा कृषि का डिजिटलीकरण करने के बारे में अपने नवाचारी प्रौद्योगिकीय समाधानों को पेश किया था। जलवायु स्मार्ट खेती, कृषि मूल्य-श्रृंखला में नवोन्मेष, कृषि-लॉजिस्टिक्स व आपूर्ति श्रृंखला, सतत खपत के लिये गुणवत्ता आश्वासन और पोषक अनाजः अच्छे स्वास्थ्य को कायम रखना, कृषि को अधिकार-सम्पन्न बनाना जैसे कुछ विषय प्रदर्शनी में शामिल किये गये थे। इसके अलावा, देशभर के किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के तमाम सदस्यों ने बड़े पैमाने पर खाद्य उत्पादों को पेश किया था, जिन्हें पूरे देश में बेचा जाता है। यह गतिविधि ‘सामूहिक कृषि के माध्यम से ग्रामीण समृद्धि को सक्षम बनाना’ वाली विषयवस्तु के अनुरूप आयोजित की गई थी।
मनभावन ‘लाइव कुकिंग सेशन’ में भिन्न-भिन्न प्रकार के मोटे अनाजों से बने स्वादिष्ट व्यंजनों को पेश किया गया था। यह कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के अनुरूप आयोजित किया गया था। इसमें तीन जाने-माने शेफ – कुणाल कपूर, अनाहिता धोंडी और अजय चोपड़ा – ने योगदान किया। इनके साथ आईटीसी ग्रुप के दो खानपान विशेषज्ञ शेफ कुशा और शेफ निकिता भी थीं। निर्धारित ‘प्रत्यक्ष पाक कला क्षेत्र’ में इन पांचों शेफों ने एक ‘फुल कोर्स मील’ तैयार किया, जिसमें मोटे अनाजों को केंद्र में रखा गया था। व्यंजनों की इस श्रृंखला में एपीटाइजर, सलाद, मेन कोर्स और मीठे खाद्य पदार्थों को शामिल किया गया था।
शेफ अनाहिता, शेफ कुणाल और शेफ अजय ने स्टार्टर, मेन कोर्स और डेसर्ट की तैयारी करने का काम पूरी जिम्मेदारी से निभाया। मिसाल के लिये, शेफ अनाहिता ने कच्चे केले और बाजरे की टिक्की बनाई और उसके ऊपर चौलाई के पत्तों से सजावट की। इसके साथ ही शेफ कुणाल ने ज्वार-खुंबी का स्वादिष्ट खिचड़ा पकाया। और, अंत में शेफ अजय ने अनेक मोटे अनाजों से बने मुख्य व्यंजन पेश किये, और फिर मिलेट का बना ठेकुआ व नींबू श्रीखंड से बना मिष्ठान्न तैयार किया। प्रदर्शनी के भीतर, खानपान को समर्पित एक स्थान रखा गया था, जहां सभी जी-20 सदस्य देशों के यहां के मोटे अनाज से बने व्यंजन प्रदर्शित किये गये थे। इस तरह इस कार्यक्रम में सभी देशों को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व दिया गया।
प्रदर्शनी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा लगाये गये स्टॉलों के जरिये भारत के अनुसंधान और विकास उपलब्धियों को भी दर्शाया गया था। इसके माध्यम से नपी-तुली खेती व कृषि प्रौद्योगिकी में अत्याधुनिक नवोन्मेषों और इस सेक्टर का विकास करने वाले कदमों की जानकारी दी गई थी। हर स्टॉल में उन विशिष्ट फसलों में की जाने वाली प्रगति को दर्शाया गया था, जिन्हें सरकारी पहलों की मदद मिली है। कुछ प्रमुख स्टॉलों की विषयवस्तुओं में बासमती की खेती में क्रांति, लाखों-लाख बासमती किसानों की सम्पन्नता और पांच अरब अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा की कमाई करने में बासमती चावल की भूमिका को दिखाया गया था। एक अन्य स्टॉल में “मसालों की धरती” के रूप में भारत की स्थिति को रेखांकित किया गया था। इसके तहत दुनिया भर में भारतीय मसालों की धूम और उनकी भावी संभावनाओं पर जोर दिया गया था। इसके बगल में लगे स्टॉल में खुंबी के पोषक तत्त्वों और औषधीय महत्त्व, भारत में खुंबी की अनेक किस्मों और निर्यात में उसकी क्षमता को दर्शाया गया था। इसके साथ ही, विशिष्ट अतिथियों ने सेंसर आधारित प्रणाली का भी अवलोकन किया। इस प्रणाली के तहत केले के यातायात, उसके भंडारण और उसके पकने के समय पर्यावरण के हालात पर नजर रखी जा सकती है। आईसीएआर द्वारा आयोजित दिलचस्प प्रदर्शनियों में से एक प्रदर्शनी यह भी थी।
प्रदर्शनी का एक और आकर्षण ‘एग्रीकल्चर स्ट्रीट’ था, जिसे मंत्रालय ने तैयार किया था। इसमें भारत की कृषि विरासत की मोहक यात्रा को दिखाया गया था। इसके साथ ही भारतीय कृषि के जीवंत अतीत और उसके भविष्य में झांकने का भी अवसर मिलता था। इस सिलसिले में मंत्रालय ने कृषि के कामकाज पर समग्र चित्रण पेश किया। साथ ही, विशेषज्ञों, विज्ञानियों और किसानों को एक छत के नीचे एकत्र किया था। इस स्ट्रीट में आपसी बातचीत के लिये नौ स्टॉल लगाये गये थे। हर स्टॉल की सजावट ग्रामीण परिवेश की थी। यहां जी-20 राष्ट्राध्यक्षों के जीवनसंगियों के लिये खुशनुमा माहौल तैयार किया गया था। यहां उन्हें कृषि के विविध पहलुओं को जानने का मौका मिला, जिसमें मोटे अनाजों पर विशेष जोर दिया गया था। इसके जरिये खाद्य और पोषण सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से भारत की पहलों को भी रेखांकित किया गया था। ‘एग्री-गली’ का मुख्य आकर्षण लहरी बाई की प्रदर्शनी थी। लहरी बाई डिनडोरी, मध्यप्रदेश की एक युवा किसान हैं, जिन्होंने 150 से अधिक किस्मों के बीजों का संग्रह किया, जिनमें मिलेट के बीजों की लगभग 50 किस्में शामिल हैं। इन्होंने इनका संग्रह दो कोठरियों वाली झोपड़ी में किया है। इस कारण उन्हें भारत की ‘मिलेट क्वीन’ कहा जाता है।
कार्यक्रम के पूरा हो जाने पर जी-20 राष्ट्राध्यक्षों के जीवनसाथियों को हैम्पर के रूप में उन्हें प्रतीक-चिह्न भेंट किया गया। भारत की जीवंत सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तुओं का सावधानीपूर्वक चयन करके हैम्पर में शामिल किया गया था। इन वस्तुओं में हाथ से बुना रेशमी स्टोल था, जिसे छत्तीसगढ़ के साल के जंगलों में पैदा किये गये रेशम से तैयार किया गया था। इसके अलावा, हस्तनिर्मित कांस्य लघु प्रतिमा भी थी, जिसे प्राचीन लाख तकनीक से तैयार किया गया है, जो अब विलुप्त हो चुकी है। प्रतिमा बनाने की यह तकनीक उस ‘नर्तकी’ की प्रतिमा से मेल खाती है, जो हड़प्पाकालीन सभ्यता (3300 ईपू से 1300 ईपू) तथा चेरियाल चित्रकारी में मिलती है।
इस दौरे से प्रथम महिलाओं और जीवनसाथियों को मौका मिला कि वे जान सकें कि भारत ने मिलेट की खेती सहित समस्त कृषि क्षेत्र में क्या विकास किया है। मोटे अनाज की पैदावार करने वाले 10 राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार और असम की महिला किसानों को आमंत्रित किया गया था। ये महिलायें मैदानी स्तर पर होने वाले परिवर्तनों का प्रतीक थीं। इनके साथ बातचीत करके प्रथम महिलाओं व जीवनसंगियों को देश की मिलेट मूल्य श्रृंखला की जानकारी हासिल करने का मौका मिला। जाने-माने शेफों ने शानदार भोज का आयोजन किया, जिसमें विशिष्ट अतिथियों के समक्ष मोटे अनाजों और भारतीय पाक-कला की विविधता को पेश किया गया था। इसके अलावा स्टार्ट-अप्स और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) ने अपनी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों और उत्पादों का प्रदर्शन किया तथा इस तरह वहां उपस्थित लोगों को एक अनोखा व स्मरणीय अनुभव प्राप्त हुआ।