लघु कहानी- एक हथिया देवालय, पिथौरागढ़ (थल)
पिथौरागढ़ जनपद के थल तहसील के भोलीयाझीड़ की पहाड़ी पर स्थित एक ऐसा पौराणिक शिव मंदिर जो कत्यूर वंश के समकालीन बना यह एक उनूठा शिव मंदिर है जो अपने आप में बना एक अलग ही वैश्विक पहचान रखता है, कुछ जानकार तो यह भी कहते हैं कि यह किसी एक हाथ वाले कारीगर ने इसको एक ही रात में बनाया था।
लेकिन इस मंदिर के विषय में दो कहानीयाँ प्रचलित हैं-
1. पहली, पौराणिक कथा के अनुसार भोलीयाझीड़ की पहाड़ी के पास स्थित गांव में एक गुणी शिल्पकार रहता था। एक बार किसी अज्ञात दुर्घटना में उसका एक हाथ किसी काम करने योग्य न रहा। जब शिल्पकार का एक हाथ काम का ना रहा तो गाँव समाज ने शिल्पी उलाहना करनी शुरू कर दी। गांव वालों की उलाहना को सुनकर एक रात अपने हथौड़ा और छिनी को लेकर अपने घर से निकला और उसने रातों-रात गांव के दक्षिण में एक चट्टान को काटकर एक मंदिर का निर्माण किया और रात ही गांव भी लौट आया, आज इस महान कृति कोएक हथिया देवालयके नाम से जाना जाता है।
2. दुसरी, कथा के अनुसार शिल्पी ने किसी क्रुर राजा के लिए एक महल को बनवाया व महल बन जाने पर उस राजा ने ऐसा महल दौबारा न बन पाए इसलिए उस शिल्पी का एक हाथ काट दिया तथा शिल्पी ने उस राजा को सबक सिखाने के लिए इस एक हथिया देवालय का निर्माण रातों-रात कर दिया।
इस शिव मंदिर के निरक्षण के उपरान्त यह दोनों की कहानियाँ की सत्यता का आभास होता है, क्योेकि मंदिर का शिवालय दक्षिणमुखी है, जबकी उसको उत्तरमुखी होना चाहिए था, इस तथ्य को देखकर ऐसा लगता है कि रात के अंधेरे में उस शिल्पी को सही दिशा का आभास नहीं हो पाया होगा, जिस कारण इस मंदिर में शिव लिंग दक्षिणमुखी है।
दक्षिणमुखी होने के कारण ही इस मंदिर में कभी भी शिव लिंग की पूजा नहीं की जाती है हालाँकि गाँव तथा आसपास के लोग लोकपर्वों (स्थानिय भाषा में-त्यार) पर एकजुट होते हैं लेकिन मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करते हैं।
धार्मिक मान्यता से अधिक यह देवालय सरकारी देखरेख के दायरे में भी नहीं, हमारी सरकारों और प्रशासन को चाहिए की हमारे इस देवालय और एतिहासिक दृष्टि के महत्वपूर्ण एक हथिया देवालय को संरक्षित करें।
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