देहरादून। सियासी गलियारों में चल रही इस खबर पर उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। दसौनी ने कहा कि यदि यूसीसी देश हित में है तो फिर धामी सरकार को चाहिए कि वह केंद्र सरकार से इसे पूरे देश में लागू करवाये क्योंकि उत्तराखंड देश से अलग नहीं है और यूसीसी का मतलब ही यूनीफामिटी यानी सभी नागरिकों में एकरुपता है। दसौनी ने कहा यदि यूसीसी उत्तराखंड में लागू हो भी जाएगा और देश में नहीं तो इसका कोई औचित्य दिखाई नहीं पड़ता।
दसौनी ने कहा देखा जाए तो यूसीसी केंद्र का मुद्दा है और यदि भविष्य में केंद्र सरकार देश में यूसीसी लाती है तो उस सूरत में उत्तराखंड का यूसीसी ठंडे बस्ते में चला जाएगा फिर तो धामी सरकार की यह पूरी कवायद ही बेमानी साबित होगी। दसौनी ने कहा कि पहले दिन से धामी सरकार यूसीसी के मामले में गंभीर नहीं दिखाई पड़ रही है यूसीसी को लेकर कई बार सरकार के बयान बदले हैं। यूसीसी भी अपना ड्राफ्ट बहुत पहले सरकार को सौंप चुकी थी लेकिन शायद ड्राफ्टिंग सरकार के मन मुताबिक नहीं हो पाई इस वजह से इसका पुनः अवलोकन किया गया। श्रीमती दसौनी ने कहा की सरकार द्वारा यूसीसी पर हाई पावर समिति बुलाई गई जिसमें प्रदेश के मुख्य विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया था, परंतु प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन महारा के ड्राफ्टिंग समिति को तीन बार चिट्ठी लिखने पर भी समिति से ड्राफ्ट नहीं मिल पाया। दसौनी ने कहा की जब यूसीसी का ड्राफ्ट ही उपलब्ध नहीं था तो चर्चा केसे संभव है।
मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस ये जानना चाहती थी कि यूसीसी के ड्राफ्ट में किन महत्वपूर्ण बातों की अनदेखी की गई है, उसके बाद ही वह सरकार को अपना सुझाव दे सकती थी, परंतु धामी सरकार यूसीसी के ड्राफ्ट को पब्लिक डोमेन में आने ही नहीं देना चाहती और तानाशाही रवैया अपनाते हुए नोटबंदी जीएसटी और तीन कृषि कानून की तरह अपना मन मुताबिक यूसीसी उत्तराखंड पर थोपना चाहती है। दसौनी ने कहा की यूसीसी कितना सफल या कितना प्रदेश हित में साबित होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना जरूर है की यूसीसी को लेकर धामी सरकार के बार बार बदलते बयानो और कदमों ने भेड़िया आया वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है।