Story of Kumaon King Thoharchand : कुमाऊं के चंद शासकों की वंशावली में एक थोहरचंद नाम का राजा आता है। फ्रांसिस हैमिल्टन ने अपने दस्तावेज द एकाउंट ऑफ़ दी किंगडम ऑफ़ नेपाल में थोरचंद को कुमाऊं में चंद वंश का संस्थापक माना है। थोरचंद को कुमाऊं में चंद वंश का संस्थापक मानने की बात डब्लू फ्रेजर भी करते हैं। इसके साथ ही थोहर चंद को कई अन्य लेखक भी चंद वंश के प्रथम शासक या संस्थापक के रूप में जानते हैं।
किन्तु एटकिंसन द्वारा लिखित किताब हिमालयन गजेटियर व बद्रीदत्त पांडे की पुस्तक कुमाऊं का इतिहास, दोनों में ही चंद वंश का संस्थापक सोमचंद को बताया गया है।
तो आइये शुरू करते हैं Story of Kumaon King Thoharchand चंद वंश के महान राजा थोहरचंद जिनको चंद वंश का राजा बनाया गया था।
इलाहबाद के निकट झूसी नाम का एक स्थान था जहां के शासक चंद राजा हुआ करते थे। थोहरचंद जो बाद में चंश वंश का महान राजा हुआ, इन्हीं चंदवंशीय राजा के यहां ग्वाला था। एक दिन थोहरचंद चंद वंशीय राजाओं के यहां गोबर उठा रहा था। थोरचंद को काम करता देख एक ब्राह्मण उसके समीप पहुँचा, ब्राह्मण ने जब थोहरचंद के पैरों के निशान गोबर पर देखे तो वह आश्चर्य से चकित रह गया।
उस ब्राह्मण ने थोहरचंद को आश्चर्य से देखा और बोले कि हे बालक! तुम जल्दी ही किसी राज्य के राजा बनने वाले हो। उस ब्राह्मण की यह बात सुन उस दिन थोहर चंद ने उस ब्राह्मण का मजाक उड़ाया और कहने लगा कि- हे ब्राह्मण! अगर आपके द्वारा कही गई यह बात सच साबित होती है तो में अपने राज दरबार मे आपको दीवान का पद दुंगा।
यह ठीक उसी काल की बात थी जब कुमाऊं का राजा की कोई संतान नहीं थी। कुमाऊं के राजा के उन दिनों छंदों के राज दरबार मे कुछ अपने खास रिश्तेदारों को भेजा था और वहां के चंद राजा से अनुरोध किया था कि वह अपने पुत्रों में से कोई एक पुत्र कुमाऊं पर राज करने कुमाऊं दरबार में भेंज दें।
उन दिनों चंद राजा अपने पुत्रों से खुब प्यार करता था और वह चंद राजा यह समझता था कि उसके बैटे तो मैदानी इलाकों में पले-बड़े हुए तो वह पहाड़ों में कैसे अपना राजकाज कर सकते हैं।
तक उस राजा ने अपनी राज्यसभा में यह दुविधा रखी और दरबारीयों से पुछा कि क्या किया जाए? इतने में किसी अन्य दरबारी ने उत्तर दिया कि वह चंद राजा अपने ग्वाले को राजकुमार बनाकर कुमाऊं भेज दें । यही इस दुविधा का समाधान है।
इस तरह झूसी के चंद शासकों ने एक ग्वाले को राजकुमार बनाकर कुमाऊं में राज काज हेतू भेज दिया। इस ग्वाले का नाम था थोहरचंद। जब थोहरचंद को इस बात का पता चला कि वह राजा बनने वाला तो उसे ब्राह्मण की बात याद आ गयी और ब्राह्मण को किया अपना वादा भी उसी समय याद आ गया।
थोहरचंद ने उस चंदवंशीय राजा से विनती की कि वह उसके साथ ब्राह्मण को भी कुमाऊं भेजे। राजा ने उसकी यह विनती सुनी और सुन ली और उस ब्राह्मण को थोहरचंद के साथ कुमाऊं भेज देता है और इस प्रकार चौथारी ब्राह्मण कुमाऊं आ गये और थोहरचंद ने अपने वादे के अनुसार चौथारी ब्राह्मण को राजा बनते ही कुमाऊं के चंदवश में अपना दीवान भी नियुक्त किया।