देहरादून 08 नवंबर। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2023 के 12वें दिन के कार्यक्रम की शुरूआत मास्टर शिल्पकार कार्यशाला से हुई जिसमें स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन घनश्याम जी और कल्पना शर्मा द्वारा किया गया। इस कार्यशाला में 3 स्कूलों, 1 कॉलेज और 1 ट्रस्ट ने भाग लिया : एसजीआरआर पब्लिक स्कूल बालावाला, दून इंटरनेशनल स्कूल, लतिका फाउंडेशन, आसरा ट्रस्ट और बीएस नेगी महिला तकनीकी प्रशिक्षण संस्थान। कुल मिलाकर 110 छात्र थे जिन्होंने इस कार्यशाला में भाग लिया और एक्सपर्ट्स से मिट्टी के बर्तन बनाना, प्राकृतिक और सिंथेटिक टाई और डाई, मुखौटा बनाना, पहाड़ी कला और क्यूबिक्स सॉल्विंग करना सीखा।
आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभांरंभ मुकेश सिंह आई.पी.एस आईजी, आईटीबीपी एवं रीच विरासत के महासचिव श्री आर.के.सिंह एवं अन्य सदस्यों ने दीप प्रज्वलन के साथ किया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति में बिहार के लोकप्रिय नाटक ’भिखारी ठाकुर रंगमंडल’ की ओर से ’गबरघिचोर’ का मंचन किया गया। जिसमें जैनेन्द्र दोस्त : पंच, राहुल कुमार : गबरघिचोर, मंचन : गलीज बहु, सुनिल गावस्कर : गलीज, नमन मिश्रा : गड़बड़ी, धर्मराज : जल्लाद, रमलखन : फुहरी एवं समाजी, बृजनाथ सिंह : नृत्य एवं समाजी, रवीन्द्र पटेल : नृत्य एवं समाज, गौरी शंकर : हारमोनियम, संदीप कुमार : ढ़ोलक, शिव कुमार : ध्वनि एवं प्रकाश विन्यास, रंजीत भोजपुरिया : मंच व्यवस्था, सरिता साज़ : संगीत एवं रूप विन्यास के भुमिका में नजर आए। इस नाटक का निर्देशन डॉ. जैनेंद्र दोस्त ने किया।
गबरघिचोर नाटक भिखारी ठाकुर का सबसे चर्चित लोक नाटक है। यह नाटक बिदेसिया का सिकुअल की तरह है। यह एक सांगितिक नाटक है। नाटक की कहानी भी विस्थापन से जुड़ी समस्या से शुरू होती है। जिसमें विस्थापित पति द्वारा पत्नी को भुला दिए जाने से उत्पन्न समस्या मुख्य है। परंतु सबसे ख़ास बात यह है कि यह नाटक स्त्री के अपने बेटे पर अधिकार की वकालत करता स्त्री विमर्श पर केंद्रित है। यह नाटक पुरुषवादी धारणाओं के ऊपर पर मातृत्वता के पक्ष में खड़ा होता है। इस नाटक में पूर्वांचल क्षेत्र के अनेक नृत्य और गायन शैलियों को जैसे कि जाँघिय नृत्य, पूर्वी गीत, दोहा, चौपाई, विलाप गीत, निर्गुण गीत आदि को शामिल किया गया है।
डॉ. जैनेंद्र दोस्त “भिखारी ठाकुर रंगमंडल प्रशिक्षण एवं शोध केंद्र” के फ़ाउंडर डाइरेक्टर हैं। इस रंगमंडल के माध्यम से जैनेंद्र दोस्त लोक कलाकार और बिहार के विरासत बिदेसिया के जनक भिखारी ठाकुर के रंगमंच, गीत-संगीत, नृत्य, वाद्ययंत्र को पुनर्जीवित कर रहे हैं। इनके अथक प्रयास से ही भिखारी ठाकुर की पुरानी नाच मंडली के नाटक दुबारा से मंच पर जीवंत हो उठे हैं। जैनेंद्र दोस्त की रंगमंचीय पढ़ाई हिंदी विश्वविद्यालय के थिएटर एंड फ़िल्म डिपार्टमेंट से हुई है। इन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) दिल्ली के आर्ट एंड एस्थैटिक्स विभाग में लौंडा नाच एवं भिखारी ठाकुर पर पीएचडी किया है। तथा भिखारी ठाकुर के रंगसंगी पद्मश्री रामचंद्र माँझी से भिखारी ठाकुर के रंगमंच की बारीकियों को सिखा। जैनेन्द्र ने अब तक 15 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है। इनके द्वारा निर्देशित नाटक एवं संगितिक कार्यक्रम न सिर्फ़ देश के प्रतिष्ठित रंग-महोत्सवों में बल्कि पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल एवं भूटान आदि देश के रंग-महोत्सवों में भी आमंत्रित एवं प्रदर्शित किए जा चुके हैं। हाल ही में जैनेंद्र दोस्त ने भिखारी ठाकुर के रंगकर्म पर ‘नाच भिखारी नाच’ नामक एक फ़िल्म बनाई है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिल रही है।
“भिखारी ठाकुर रंगमंडल” भिखारी ठाकुर के रंगमंच, गीत-संगीत एवं नृत्य प्रस्तुति के व्यवसायिक रंगमंडल के साथ-साथ उनकी रंग-परम्परा के प्रशिक्षण एवं शोध की संस्था है। भिखारी ठाकुर के सानिध्य में प्रशिक्षण प्राप्त एवं उनके दल में काम कर चुके सभी जीवित कलाकार आज इस रंगमंडल के अभिन्न अंग हैं। इस केंद्र ने भिखारी ठाकुर के रंगमंचीय परंपरा को सम्पूर्णता में पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। वर्तमान समय में रंगमंडल के पास भिखारीनामा सहित बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटीबेचवा, पिया निसइल, गंगा स्नान आदि नाटक तैयार है एवं अन्य नाटकों के निर्माण पर कार्य जारी है। इस रंगमंडल का मुख्य उद्देश्य है भिखारी ठाकुर की नाट्य-परंपरा को परफॉर्मेंस के द्वारा जीवित रखना तथा प्रशिक्षण के द्वारा उसे एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में हस्तांतरित करना है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम की दुसरी प्रस्तुति में पूर्बयन चटर्जी द्वारा सितार वादन प्रस्तुत किया गया जिसमें उन्होंने राग मनोरंजनी से कार्यक्रम की शुरुआत की और मध्य और द्रुत झप ताल में एक बंदियों से मंत्रमुग्ध करते रहे।
पूर्बयन चटर्जी एक भारतीय सितार वादक हैं जो पारंपरिक भारतीय शास्त्रीय संगीत को समकालीन विश्व संगीत शैलियों के साथ मिलाने के लिए जाने जाते हैं। पूर्बयन चटर्जी ने अपने पिता पार्थप्रतिम चटर्जी से सितार सीखा। पुरबायन का संगीत पं. निखिल बनर्जी की आवाज़ से प्रेरित है। उन्होंने एक एकल कलाकार के रूप में और शास्त्री सिंडिकेट और स्ट्रिंगस्ट्रक समूहों के एक भाग के रूप में प्रदर्शन किया है। वह एक गायक भी हैं और उन्होंने एल्बमों के लिए प्रदर्शन किया है। चटर्जी को 15 साल की उम्र में देश के सर्वश्रेष्ठ वाद्ययंत्र वादक होने के लिए भारत के राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें क्षेत्र में उत्कृष्टता और योगदान के लिए आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार भी मिला है। उन्हें 1995 में रोटरी इंटरनेशनल द्वारा रसोई पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
पूर्बयन चटर्जी भारत के एक अत्यधिक सम्मानित और बहुमुखी सितार वादक हैं, जो अपने असाधारण कौशल और संगीत के प्रति नवीन दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। कई दशकों के करियर के साथ, उन्होंने पारंपरिक भारतीय शास्त्रीय संगीत को समकालीन प्रभावों के साथ सहजता से मिश्रित करते हुए, अपने मंत्रमुग्ध प्रदर्शन से दुनिया भर के दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। चटर्जी की अपने वाद्ययंत्र के बारे में गहरी समझ और अपनी भावपूर्ण धुनों के माध्यम से भावनाओं को जगाने की उनकी क्षमता ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में स्थापित किया है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुति में राधिका चोपडा द्वारा गजल प्रस्तुत किया गया। जिसमें उन्होंने ग़ालिब, फ़ैज़ और इक़बाल जैसे मशहूर शोअरा की ग़ज़लें और कलाम पेश किये। ग़ालिब की एक खूबसूरत ग़ज़ल, “रोनों से और इश्क़ में बेबाक हो गए।“ राग नन्द में, फिर राग देस में अल्लामा इकबाल का कलाम, ’’तेरे इश्क की इंतिहा चाहता हूं..’’साहिर लुधियानवी का एक गाना, “तुम अपना रंज ग़म।“ मैं राग पहाड़ी, फिर अली अहमद जलीली की ग़ज़ल, “ख़ुशी में मुझको ठुकराया।“ राग मल्हार में और राग मालकौंस में एक खूबसूरत रचना और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब का कलाम, “राज़ ए उल्फत छुपा के देख लियाकृ“ राधिका जी के साथ सारंगी पर मुराद अली, तबले पर अमजद खान और हारमोनियम पर नफीस अहमद ने संगत की।
राधिका चोपड़ा भारत की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका हैं। उन्होंने पं. जे.आर.शर्मा जी से संगीत सीखा है। उन्होंने हिंदुस्तानी संगीत में एमए पूरा किया और इसके लिए स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, मध्य पूर्व, दक्षिण अमेरिका और पूर्वी अफ्रीका में प्रदर्शन किया है। राधिका जी के पास व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक 11 स्व-रचित ग़ज़ल एल्बम हैं, जिनमें भारत और विदेश के 25 से अधिक समकालीन कवियों की रचनाएँ शामिल हैं। उनकी नवीनतम कृतियों में से एक है, जिसका शीर्षक है ’गज़ल की कहानी, मेरी ज़ुबानी।’ डॉ. चोपड़ा की उत्कृष्टता और मधुर आवाज, उनकी कुरकुरी और स्पष्ट आवाज़, हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में उनकी त्रुटिहीन शैली के साथ मिलकर, उन्होंने दुनिया भर में समझदार श्रोता की प्रशंसा हासिल की है। तबला वादक शुभ जी का जन्म एक संगीतकार घराने में हुआ था। वह तबला वादक श्री किशन महाराज के पोते हैं। उनके पिता श्री विजय शंकर एक प्रसिद्ध कथक नर्तक हैं, शुभ को संगीत उनके दोनों परिवारों से मिला है। बहुत छोटी उम्र से ही शुभ को अपने नाना पंडित किशन महाराज के मार्गदर्शन में प्रशिक्षित किया गया था। वह श्री कंठे महाराज.की पारंपरिक पारिवारिक श्रृंखला में शामिल हो गए। सन 2000 में, 12 साल की उम्र में, शुभ ने एक उभरते हुए तबला वादक के रूप में अपना पहला तबला एकल प्रदर्शन दिया और बाद में उन्होंने प्रदर्शन के लिए पूरे भारत का दौरा भी